*मनः संवाद—-*
मनः संवाद—-
30/08/2024
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
स्वालंबी बन मूरख मन, पर मुख तू क्यों ताकता, अब तक पड़ा निराश।
टुकड़ों में पलता आया, दुत्कारेंगे एक दिन, सोया दिखे हताश।।
पहचान स्वयं को तू अब, आलस का पथ छोड़ दे, चल उड़ चल आकाश।
सबसे अलग बना है तू, है विशेष ये जान ले, तुझमें दिव्य प्रकाश।।
अपने को पहचान तनिक, ऋषियों की संतान है, सभी असंभव शक्य।
भूला है सामर्थ्य स्वयं, समय गुजरता जा रहा, अब आया वार्धक्य।।
जो मुझमें वह तुममें भी, बढ़ आगे साहस जुटा, नहीं कहीं पार्थक्य।
सर्कस का तू शेर नहीं, जो टुकड़ों पर पल रहा, तुझमें है चाणक्य।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)