*मनः संवाद—-*
मनः संवाद—-
03/10/2024
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
खोया है इंसान स्वयं, और ईश को ढ़ूँढ़ता, देखी अचरज रीत।
गुम तेरी पहचान हुई, समझ रहा मैं पूर्ण हूँ, बनता है रंजीत।।
तू अपनी औकात समझ, मात्र माँस का लोथड़ा, सजकर लगे पुनीत।
वह तेरे भीतर रहता, बहिर्मुखी हो खोजता, जीवन हुआ व्यतीत।।
दूजों के निर्णय करता, बनता न्यायाधीश तू, करे स्वयं अन्याय।
देता है उपदेश बहुत, कर्महीन तू है स्वयं, भूला कटुक कसाय।।
रावण वंश भरा तुझमें, कहता सबको राम मैं, पीड़ित हैं असहाय।
सारे प्रश्नों के उत्तर जो, अगर चाहता आज तो, जग को जान सराय।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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