मध्यम परिवार….एक कलंक ।
मध्यम परिवार की पता ना कैसी मजबूरी है ।
पिता और बेटे की अनचाही सी दूरी है 😔
अपने संघर्ष के दिनों में …….
मानचित्र और किताबों से रत्न चुराता हूं।
पाता हूं कमरे में अपने आप को हताश अकेला
करता हूं फिर एक बार खुद पर भरोसा
सफलता के लिए संघर्ष जारी है ।
घर जा कर पाता हूं थोड़ा घर बदल जाता है थोड़ा मैं बदल जाता हु….!
पिता मुझे थोड़े बूढ़े नजर आते हैं
मैं उन्हें बड़ा नजर आता हूं .।
मां कुछ भोली नजर आती है
मैं खुद को समझदार पाता हूं ।
एक दिन IAS बन के घर जाना है💯
पहली salary से मां के लिए साड़ी ले जाना है ❤️
साथ ही ……….।
पापा के नाम से अपनी पहचान कराना है.।
विवेक शर्मा विशा🥇
इलाहाबाद विश्वविद्यालय 🎓