मधुशाला-1
अल्हड़ अरु अलमस्त पवन,
बहती छू ,कलियों की काया।
बलखाती, इठला कर चलती,
यौवन से, सुरभित आभा।
भ्रमर वृन्द, गुन्जार चतुर्दिक,
हुआ समाँ है, मतवाला।
मधुर, मगन, मदमस्त, मनोहर,
सुन्दर, अप्रतिम, वह बाला।
अधरों से क्यों, पियूँ आज,
मादक जब, नयनों की भाषा।
रखे समेटे, भूचालों को,
बरसों की रक्खी, हाला।
मन वीणा, झँकृत कर जाता,
स्वप्न मृदुल, मस्ती वाला।
कण-कण है उद्दीप्त, समाहित,
धड़कन मेँ, उसका साया।
अम्बर को, सूझी है शरारत,
हुआ मेघ से, दिल काला।
जलधारा भी लगे निरर्थक,
जहाँ, धधकती हो ज्वाला।
रहे प्रेम आगार, अपरिमित,
कभी न रीता, हो प्याला।
कितना झँझावात प्रबल हो,
डिगे नहीं, हिम्मतवाला।
“आशा” और निराशा बुनते,
जीवन का ताना-बाना।
इतनी कब सामर्थ्य, प्रिये,
लिख दूँ मैं, पूरी मधुशाला..!
##———-##———##———-##———##
रचयिता-
Dr.asha kumar rastogi
M.D.(Medicine),DTCD
Ex.Senior Consultant Physician,district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist,sri Dwarika hospital,near sbi Muhamdi,dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M.9415559964