मधुशाला पर रौनक आई
दौड़ो दौड़ो दौड़ो भाई,
मधुशाला पर रौनक आई।
चालीस रोज तड़पे ऐसे,
बिन पानी हो मछली जैसे।
कोरोना ने बहुत रुलाया,
तुमसे हमको दूर कराया।
दूर कभी ना अब तुम जाना,
हो तुम जान सभी ने माना।
पाकर तुमको लगता ऐसा,
शव को मिला हो अमृत जैसा।
जान हमारी वापस आई,
दूर हुई अपनी तन्हाई।
छाई थी हर ओर उदासी,
लब सूखे अखियां थीं प्यासी।
पाकर एक झलक तुम्हारी,
झूम उठीं गलियां बेचारी।
किया फोन जब सेलर बोला,
आओ है मधुशाला खोला।
सुनकर ये यूँ उठी तरंगें,
बिन डोरी जस उड़ी पतंगें।
भाग भाग कर दौड़ा आया,
कठिन जतन कर तुमको पाया।
पल भर भी अब रुक ना पाऊं,
आओ तुमको गले लगाऊं।
क्या जानो तड़पा हूँ कितना,
मजनू भी ना तड़पा जितना।
पाकर तुमको होठ हमारे,
धन्य हुए यह “जटा” विचारे।
जटाशंकर”जटा”
०४-०५-२०२०