मधुर रसमयी जिन्दगी
भरो रस जीवन में
नीरस पसंद नहीं कोए
रसभरी चमचम खाए सब
सूखी खाए न कोए
है ये जीवन दो दिन का मेला
बिताए दिन मधुर रसभरे
बंद हो जाएँ कब ये जीवन
है यही ईश्वर का बड़ा खेला
कड़वे रस को त्यागिये
ये घोले कड़वा जीवन में
मीठा रसपान कराइये सब को
है यही जीवन सार
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल