मधुर – मधुर मन्द – मन्द
….. त्रिपद छन्द ….. ( ठुमक चलत रामचन्द्र ) से प्रेरित
मधुर- मधुर मन्द- मन्द , मोहन मुस्कायें
मोर मुकुट तिलक भाल
वैज्यन्ती कण्ठ माल
नूपुर ध्वनि ठुमक चाल , छम- छम थिर धायें
चपल नयन चञ्चल मन
श्याम केश श्यामल तन
करधनि कटि पीत वसन , कुण्डल झलकायें
मचल- मचल भूमि लोटि
खींचत लट झपट चोटि
लीला धर कोटि- कोटि , मटक- मटक जायें
मुँड़- मुँड़ हँस किलक जात
लुक छिप सँग हँसत भ्रात
माँखन मुख लेप गात , अनुपम सुख पायें
मुरली धुन साम- ताल
नाचत भूतल त्रिकाल
गोपिन सँग ग्वाल- वाल ,रुन- झुन मिल गायें
कौतुकमय बाल रूप
निरख नन्द छवि अनूप
पुलक- पुलक लिपट धाय , जसुमति दुलरायें
साम- ताल का अभिप्राय सामवेद के संगीत से है
डा. उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
लखनऊ