मधुर गीत
सागर संग मिलने से पहले
कुछ ऐसा तुम कर जाओ
कल कल करती बहती नदिया
गीत माधुर तुम गा जाओ ।
जब से तुम शिखरों से उतरे
पग पग ठोकर खाते रहे
ज्यों ही तुमने छुआ धरा को
मानव बिसात बिछाते रहे
पर हित बहता सलिल तुम्हारा
गीत प्रेम के गाता है
तुमने अपना धर्म निभाया
सादियों का यह नाता है
भूलो जग की बातें फिर से
उदारमना तुम हो जाओ
प्रियतम से मिलने से पहले
प्राण धारा को दे जाओ
सागर संग मिलने से पहले
कुछ ऐसा तुम कर जाओ
कल कल करती बहती नदिया
गीत माधुर तुम गा जाओ ।।
राह सखी जो मिली तुम्हें
उसका तुमने दामन थामा
भूल गए क्या उसका अपना
मिलकर कदम बढ़ाते हो
बांह पकड़ तुम उसकी फिर
नित नई राह दिखलाते हो
लोग तुम्हीं से शुचितर होते
और तुम्हीं को करते दूषित
भुलाकर उनके अपराधों को
तुम, आंचल में उन्हें समाते हो
परहित सोच तुम्हारी प्रतिपल
धर्म ध्वजा तुम फहरा जाओ
सागर संग मिलने से पहले
कुछ ऐसा तुम कर जाओ
कल कल करती बहती नदिया
गीत माधुर तुम गा जाओ ।।
बंध्या धरती के भाग जगे
जब जब तुमने आशीष दिए
त्रस्त होंठ फिर सरस हुए
जब जब तुमने छूआ है
कृषक बालिका के बने महोत्सव
जब खेतों में उसके पहुंची हो
जब जब तुम ठहरी हो सरिते
जब तुमने है रुक कर देखा
मरुभूमि में पहुंच गई तुम
लेकर अपनी सखियां सारी
झूमा कृषक और सारे जन उसके
तुम मधुर रूप निज दिखला जाओ
सागर संग मिलने से पहले
कुछ ऐसा तुम कर जाओ
कल कल करती बहती नदिया
गीत माधुर तुम गा जाओ ।।