मधुयामिनी
मधुयामिनी
सुहानी सी ये चाँदनी रात
पुष्प से खिले मन के जज्बात
नीले गगन तले,तारों के छाँव संग
जलता है मन ,जलते अलाव संग
सिद्धहस्त हाथों का मृदुल मंद थाप
मेघ-मल्हार सम कोई राग अलाप
हुआ मन-मलंग,अनंग,बाजे मृदंग
थिरकी गोरी,खिला रंग,अंग-अंग
ये नर्तकी कोई कर रही है नर्तन
या भावों से भरा,थिरक रहा मन
मृदु मलय या मादकता के मारे है
ये मनमौजी है या कोई बंजारे है
मदमस्त मगन अपने ही तान में
दो दिल धड़क रहे वहाँ वितान में
पूरी हुई साध आज ये मधुयामिनी
प्रीतम संग मिलन सौभाग्यशालिनी
बैठी चन्द्रमुखी कर सोलह सिंगार
आये प्रीतम देखो लिए चन्द्रहार
गोरी के गालों पे लाज यूँ सिमटे
साजन की पगड़ी में भाव लिपटे
भावों का अनगिन संसार लिए
चिरसंचित शुचि अभिसार लिए
तन-मन मशाल-सा दहक रहा है
अधर सुर्ख पलाश सा,बहक रहा है
रात ये इरादों की,वादों की,मनुहार की
मधु मिलन की रात मधुर यादगार सी
-©नवल किशोर सिंह