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1 Feb 2017 · 1 min read

“मधुमास”

मधुर मधुर मधुमास खिला
मन पुलकित उल्लास मिला।

भासमान है सूर्य बिम्ब
चल रहा साथ निज प्रतिबिम्ब।

प्रकृति ओढ़ी है नव दुकूल
मन में उठते हैं भाव फूल।

कोकिला करे कुहू पुकार
गायें भी भरती हुंकार।

भँवरे करते मकरंद रस पान
प्रियतम ने छेड़ दी प्रेम तान।

दे रही थाप गोरी पी के संग
चढ़ रहा प्रेम का पीत रंग।

मन वासंती जागे उमंग
बह रही ख़ुशी की नव तरंग

चहुँ ओर फैला ऋतुराज वसन्त
माँ के चरणों में पुष्प अनंत।

नव विहान ले रहा वितान
शोभित जलद से आसमान।

शोभायमान है निशीथ चन्द्र
उठती लहरें ज्यों बीच समुन्द्र।

दीप्तिमान हुई तरावालि
उपवन में विकसित कुसुमावलि।

पूछे विधातृ क्या अभिलाषा
ले रहा हिलोर मन जिजीविषा।

नीरजा मेहता ‘कमलिनी’

Language: Hindi
3 Likes · 3 Comments · 406 Views
Books from डॉ. नीरजा मेहता 'कमलिनी'
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