मदिरा
मदिरा
नित्य लेता हूं एक शपथ और भंग कर देता हु
त्याग दूंगा अब ये मदिरा कहकर रोज तरंग लेता हु
मद्यपान की प्रवृत्ति बड़ी ही ईमानदार है
इसे पीने वाला कटिबद्ध नियम का पालनहार है ।’
मदिरा में डूबी दृष्टि को दिखती
दुनियां बहुत नादान है
दो घूंट नीचे उतर गए ,
अब हम ही हम अदनान है ।
शब्द फिसलते टूटे फूटे,
लड़खड़ाती कथा रोज कहते
अनुभव नित्य नए सुनाते
ऐसे ज्ञानी और विद्वान है ।
रोज अपने ठिकाने पर पहुंच जाता
जो पीने को हाला है
वो भी जानता है उसने स्वयं को
इस लाल अंधेरे में ढाला है
मदिरा का स्वभाव है , उकसाती संचार बढ़ाती है
व्यक्ति का सत्य दर्शन
सारे जग को करवाती है
सच्चे किस्से बहुत सुने मदिरालय में प्याला लेकर
झूठे सारे सुने अदालत में
गीता कुरान का हवाला देकर।
मत भूलो दुनियावालों बहुत कुछ दे गई ये हाला
विज्ञान, साहित्य और संगीत के
शिखरों को भी इसने है संभाला
मेरी रक्त वाहिनियों में आज
विचरण करता मदिरालय है
ये “मय ” लेकिन मुझसे “मैं ” का भी परिचालय है
मेरी पीड़ा मेरी विवशता ,
यद्यपि मेरा है स्व परिपोषण
कोई समाज , न मधुशाला,
मैं करता हु नित्य स्वयं का शोषण ।
सांझ ढली, तिमिर धसा,
मदिरा प्रकाशित हो जाती है
नए सृजन या उपद्रव करने
पुनः उग्र व्यग्र हो जाती हैi
ऐसा नहीं अनभिज्ञ हूं, विकृत या बेकार हूं
शायद तुम ना समझोगे ,
कही तो मैं भी लाचार हु
बेवड़ा, शराबी, टुन्न, धुत्त,
मेरे ही पर्यायवाची है
क्रोध, गाली, अवहेलना, अपमान,
मेरे सहचर साथी है
समाज में शायद मेरा स्थान आरक्षित अन्यत्र है
मेरी चर्चा गली गली शहर मोहल्ला सर्वत्र है ।
मेरे वचन,,मेरी शपथ, शाम बन जाती उसका निवाला
कदम मुझे ले जाते खुद ब खुद
जिस राह पड़ती मधुशाला
इस हाला की छटा निराली,
महाकाव्य इस पर लिखे गए
पूज्य पिता के प्याले से पीकर ,
बेटे ताली सटक गए
उचित है या अनुचित
कैसे होगा इसका अब निर्णय
मदिरा के,सृजन या
टूटे फूटे संबंधों का विध्वंसित परिणय
विषय विचित्र है, एक विष वरण का
अति पृथक वर्णन है
मद्य विकृत या महान ,
ये तो पीड़ित का संघर्षण है।
सीमोल्लंघन जब भी होगा
ह्रास सदैव प्रदर्शित होगा
अनियंत्रित व्यवस्था का परिणाम भी
अनिश्चित अनियंत्रित होगा ।
किंतु इस विशिष्ट वर्ग को
नवीन दृष्टिकोण से देखना होगा
इस विकार इस बीमारी का
उपचार भी तो करना होगा ।
विवशता है , लत है या
उसके शरीर का नियमित आव्हान है
कही न कही तो वो बेवड़ा
खुद भी हैरान परेशान है।
मद्यपान के पश्चात सत्य कह जाता है व्यवहार
प्रत्येक विकार , मर्ज का
विविध है औषधोपचार
इस विकार से पीड़ित को बाहर भी तो लाना होगा
कठिन प्रयास है, मुश्किल है,
दूर तक जाना होगा ।
सहानुभूति और प्रेम से ही
निर्मित होगा नया संस्करण
गाली अपमान आलोचना से
और बढ़ेगा ये संक्रमण ।
इसी परिप्रेक्ष्य में निवेदन है,
सोचो भूमिका अलग निराली
कैसे शनैः शनैः विलुप्त हो जाए
जीवन से मदिरा की प्याली ?
रचयिता
शेखर देशमुख
J 1104, अंतरिक्ष गोल्फ व्यू 2, सेक्टर 78
नोएडा (UP)