मदिरा सवैया
प्रेम करें निज यौवन से सखि!
भूल गये निज स्वारथ मा।
निर्गुण प्रेम करें सगरे सखि!
प्रेम किये परमारथ पा।
प्रेम प्रतीति दिखे उर में सखि!
प्रीत करो निह स्वारथ का।
प्रेम प्रकाशित है जग में सखि!
प्रेम करो न अकारथ सा।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम