मदिरा के बहाने…….
हाथों की भी सफाई अब मदिरा से होने लगी,
गंगाजल का शैत्य-पावनत्व कहीं खो-सा गया।
खुद को देश की प्रगति का वाहक बताने वालों,
मदिरालय से अर्थव्यवस्था का विकास हो-सा गया।
समझ रहे थे जिसे लोग ऐसे-वैसे,
नाक-भौं सिकोड़ रहे थे कैसे-कैसे ?
भूल गए थे कि वक्त बलवान होता है,
विकास में उनका भी योगदान होता है।
हां मगर, बहाने इसके यह भी विचार करना है,
खून-पसीना बहाने वालों के लिए कुछ सोचना है।
विकास की जड़ें उनमें भी समायी है,
ग़म में जाम उन्होंने भी छलकायी है।
भूखे पेट रातें कई उन्होंने बितायी है,
टपकती छतों के नीचे सिर उन्होंने छिपायी है।
मजबूत छतें पर…. उन्होंने ही बनायी है,
विकास की धारा उन्होंने भी बहायी है।
धारा में प्रवाहित अपनी जान तक गंवायी है,
जान के साथ ज़हान भी लुटवायी है।
पर क्या कोई बदलेगा उनके लिए ?
क्या कोई सोचेगा उनके लिए ?
बार-बार यही बात उद्वेलित कर जाती है,
बहाने मदिरालय भी सोचने पर विवश कर जाती है।
देखना है कब मदिरा का दर्जा मजदूर को मिलेगा ?
विकास की धुरी बनकर कब वो भी झूमेगा ?