मदारीवाला
सिंदूरी ढलता हुआ मार्तंड
थका हरा सोने जा रहा
चिड़ियों की चहचही से गूंज उठा कलनाद
उधर खेतों से खेतिहर भी आ रहा
एक अजब सी पसरी शांति
कुछ ही देर में गुमशुम सी
हुई काली घनेरी विभवारी
चौकठ पे प्रहरी दीपक
मार रहा अंधेरे का दीमक
दादी की शुरू कहानी
एक था राजा एक थी रानी
घर घर में जले चूल्हे
आंगन में झांकती हल्की अजोरिया
टन टन बजती बच्चों की कटोरिया
रोटियां सेका रहीं तावे पर
सब बैठे फिर दावत के बुलावे पर
भर पेट खूब खाकर
सोने चले लात पसारकर
पता न चला कब
भानु ने दीप्ति बिखेरा
नभ में जलदों ने कई
नव आकृति उकेरा
फिर वही पक्षियों की चहचहाट
शीतल वायु के जागरण की आहट
सहसा उठा देखा दिवाकर का उजाला
फिर तमाशा दिखाने चल पड़ा मदारीवाला।