मदमस्त तेरी नज़रे
मदमस्त तेरी नज़रे क्या कमाल कर रही है!
नशा भी तो वो हमको बेमिसाल कर रही है!
मरहम के इंतज़ार मे है दिल के दबे ज़ख्म!
नज़रे इलाज़-ए-दर्द का इंतज़ाम कर रही है!
इज़हार हम तो कहते है दिल की आवाज़ को!
तेरी झुकी निगाहे तो बस इकरार कर रही है!
एक गुलाब जो भेजा चुपके से तुमने हमको!
कम्बख्त उसकी खुशबु तो कमाल कर रही है!
सीख कर गयी थी वो तो मुहब्बत भी हमसे!
जिस से भी कर रही है बेमिसाल कर रही है!
कभी नज़र उठा के तो कभी नज़र झुका के!
कभी सुबह कर रही है कभी शाम कर रही है!
मदहोश है वो नज़रे बड़ी शोख है वो नज़रे!
मैं नज़र चुरा रहा हूँ वो सलाम कर रही है!
AnoopS©