मदकलनी छ्न्द
कलम घिसाई मदकलनी छ्न्द पर
11112 ,11112,11112,11112
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पिक बयनी, मृग नयनी ,
मन बस जा ,मन हरषा।
ससुर सुता , बन वनिता,
उर रमजा,मत तरसा।
मदछकिया, मन रसिया,
तर कर जा, तन सरसा ।
सुन सजना कर इतना ,
अब मिल जा ,रस बरसा।
*********मधु सूदन गौतम