मत बरसात कहो
ये ग़म के आँसू हैं, मत बरसात कहो
कुछ मेरी सुनो, कुछ अपने हालात कहो
यूँ रचिये गीत ग़ज़ल, जो दिल को छू ले
उतरो गहरे सागर, फिर जज़्बात कहो
सुख-दुख का कोई अहसास लिए यारो
कम शब्दों में, हर मौसम की बात कहो
दरबारी कवि बनकर झूठ नहीं कहना
दिनको बोलो दिवस, तमस को रात कहो
ऐ अश्क़ों तुमने जीना सिखलाया है
कर लो स्वागत, खुशियों की बारात कहो