मत पूछो कोई वो क्या थे
मत पूछो कोई वो क्या थे
कुछ और नहीं वो फूल थे
एक अल्हड़ को वो भाए थे
केशों मे सजाए थे
उसका वो श्रंगार थे
मत पूछो………….
जब रणबाँकुरे घर आए थे
लोगों ने बरसाए थे
उनका वे सम्मान थे
मत पूछो………….
कुछ मैया तोड़कर लाई थी
थाली में सजाए थे
उसके लिए श्रद्धा थे
मत पूछो…………..
दुल्हन जब डोली बैठी थी
कज़रे में पिरोए थे
प्रियतम का प्यार थे
मत पूछो. ………….
नादानों ने उनको तोड़ा था
पैरों के नीचे आए थे
जो कुचले गए धूल थे
मत पूछो……..…….
‘विनोद” ये उनका भाग्य था
डाली पर मुस्काए थे
वे कवि की कल्पना थे
मत पूछो…………….
कुछ और……………