मत दो साथ किसी का तुम…
मत दो साथ किसी का तुम
बस बैठ रहो चुपचाप,
लेकिन क्या तुम कर पाओगे
खुद भी खुद को माफ ?
अत्याचार हुआ अबला पर,
लेकिन तुम चुपचाप रहे,
नहीं जगा पुरूषार्थ तुम्हारा,
तुम कायर बन खामोश रहे,
सरेआम लुट गई अस्मिता,
फिर से एक वीरनी की,
शर्मशार हो गई मनुजता,
किन्तु किसीने उफ्फ तक ना की,
लानत है तुम पर, थू भी है,
तुम बड़े मर्द बनते हो,
जब नारी अपमानित होती,
तुम अट्टहास करते हो !?
नारी सिर्फ न नारी है,
वह पहचान तुम्हारी है,
मां, पुत्री पत्नी या प्रेयसी,
वह रिश्तेदार तुम्हारी है,
नहीं भोग्या, नहीं त्याज्या,
वह पूज्या सृष्टि स्वरूपा है,
जना जगत को जननी बन,
वह नारी विश्व विभूता है,
दे सकते सम्मान नहीं तो,
अपमानित क्यों करते हो,
बेशर्मी का सरेआम यूं,
नंगनाच क्यों करते हो,
सुधर सको तो सुधर जाओ तुम,
मौका है अभी तुम्हारे पास,
वरना तुम्हें गर्भ में ही फिर,
नारी करने लगेगी साफ।
– सुनील सुमन