मत काटो मुझे
मत काटो मुझे मैं पेड़ हूँ हरा भरा
मैं हूँ बड़े काम का सोच विचार करो जरा।
देता तुमको शीतल छाया पाती सुख तुम्हारी काया
जीवन रक्षक वायु देता क्या तुम्हें ये समझ न आया।
फल फूल भी लगते सुंदर मुझ पर
पक्षी भी बनाते अपना मनोहर घर।
मेरा तुम्हारा सम्बन्ध है मित्र सम बरसों से
काटोगे मुझे तो वंचित होंगे सभी सुखों से।
दूर होगा प्रदूषण मुझसे फैला जो वायुमंडल में
मिलेंगे सुख अपार तुम्हें स्वच्छ वातावरण में।
वर्षा होती हमसे भी पानी मिलता धरती को
किसान उगाता अन्न मिलता जीवन तुमको।
काटोगे मुझे तो कुछ ना मिलेगा
बन जाओगे रोगी निरोगी कोई ना होगा।
मुझ जैसों की संख्या को ओर बढाना
मत काटो मुझे फिर कहता ओरों को भी कहना।
अशोक छाबड़ा