मत काटो मुझे(पर्यावरण संरक्षण पर विशेष)
ए मानव ! थोड़ा तरस तो खा ।
मत काट मुझे तू ,अब न सता।
समझ नहीं आता तू कैसे इतना निर्मोही हो जाता है।
मेरी ये रंगीन शाखाएं सजी फूल पत्तियां तुझे क्या बिल्कुल नहीं सुहाती हैं।
मेरी छोड़ तेरा भी तो जीवन महकाती हैं।
जिस हवा पर तेरी सांस टिकी है ,वह भी मुझसे ही आती है।
मेरे ही फूलों से हार बनाए जाते हैं।
देव कृपा पाने हेतु प्रभु पर चढ़ाते हैं।
मुझसे ही उत्पन्न फूल मनुष्य का जीवन महकाते हैं।
मेरी ही शाखों में बेचारे पक्षी आशियाना बनाते हैं।
सुहानी भोर में खुश होकर मगन हो सुर सजाते हैं।
मेरे ही फूलों से मकरंद चूसने को भौरे मंडराते हैं।
क्या तुझे इन खूबसरत फूलों से भी प्यार नहीं।
तेरे अलावा यह जग निर्भर है पेड़ पौधों पर क्या इतना भी सरोकार नहीं।
मै तुझे तेरे बच्चों के जीवन का वास्ता देता हूं।
उनका जीवन महका दूंगा खुशियों से ।
बस एक बार मुझे जीने का अवसर दे दो।
मत काटो मुझे जीने दो,रहते समय यह उपकार चुका ही दूंगा।
रेखा चल वृक्ष लगा , वृक्षों से अपनी धरतीको सजा।
मत काट मुझे —।