मत करना परवाह
मुक्तक
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धोखा हो जाए कहीं, मत करना परवाह।
कर लेना है सँभलकर, कहीं और फिर चाह।
मंजिल मिल जाती हमें, जारी रहें प्रयास।
छल फरेब हटते स्वयं, बन जाती है राह।
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बतला दो क्यों आपने, तोड़ दिया विश्वास।
जब हमको थी आपसे, स्नेह प्राप्ति की आस।
सहज सभी लगता रहा, बोल चाल व्यवहार।
धोखे और फरेब का, हो न सका आभास।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य