मत कभी मज़हबी कट्टर बनो
बहक़ाबे मे मत कभी मज़हबी कट्टर बनो?
मज़हब हो कोई?पर सब मिल जुलकर रहो.
ईसांनियत हो सबके मज़हबी इल्म़ मे?
तुम भाइचारे की खुशियाँ बिखेरा करो.
शायर- किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)
बहक़ाबे मे मत कभी मज़हबी कट्टर बनो?
मज़हब हो कोई?पर सब मिल जुलकर रहो.
ईसांनियत हो सबके मज़हबी इल्म़ मे?
तुम भाइचारे की खुशियाँ बिखेरा करो.
शायर- किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)