मत्तगयंद सवैया
लालच ने किसको न ठगा किसको न कभी मद-मोह लुभाया।
सुंदरता किसको न छली किसको न यहाँ पर काम सताया।।
यौवन-बाण लगा न किसे किसको न भयानक क्रोध जलाया।
शोक कहो किसको न छुआ किसको न छली यह साँपिनि माया।।
कौन हुआ अपना जग में सुख साधन भी कुछ काम न आया।
तापस सूर सुजान महाकवि कीर्ति बिना किसको कुछ भाया।।
शंभु विरंचि महामुनि साधक नारद को इसने भरमाया।
राम कृपा बिनु कौन यहाँ भ्रम के भवसागर से बच पाया।।
/जगदीश शर्मा