मत्तगयंद सवैया
#दिनांक ? २६ / ०२ / २०२१
#विधा ? मत्तगयन्द सवैया , सम वर्ण वृत्त या वार्णिक छन्द है।
प्रत्येक चरण में ७ भगण(२११) और दो गुरु के क्रम से २३ वर्ण होते हैं।
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रचना
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( ०१ )
नार नहीं वह भार धरा पर , प्रेम नहीं मन में धन छाए |
नैनन में सदभाव नहीं बस , आतुर होकर साधन पाए |
द्वेष रहा उर में जिसके वह , व्यर्थ दिशा पर ही मन लाए |
प्रीत पुनीत विनीत नहीं हृद , कौन उसे फिर आँखन भाए ||
( ०२ )
प्रेम नहीं छल छ्द्म दिखा कर, त्याग करे वह मानहुँ भाई |
छोड़ चले वह नार तुझे घर, में न दिखे उसको यदि राई |
नेह करे धन कौशल को बिन, द्रव्य करे पर की अगुवाई |
क्षोभ भरे उर मे तुम्हरे अरु, काल लगे तुमको दुखदाई ||
( ०३ )
प्रेम करो निज ही निज से निज, में निज को निज देखहुँ लाला ||
नेह नहीं तुझसे उसको धन, दौलत ढूंढ रही वह बाला |
प्रीत सदा अनमोल सखे! इसको न बना मदिरा मधुशाला |
देख शुभे! हिय में उसके कछु, प्रेम नहीं दिखता बस काला ||
( ०४ )
पाकर के तन मानुष के तुम, काम करो सुखदायक लाला |
भाव भरो उर में अति निर्मल, कर्म रहे शुभदायक लाला |
काज किये जनमानस के हित, होत वहीं फलदायक लाला |
भाग्य बने जब कृत्य सुहावन, कर्म सदा वरदायक लाला ||
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पूर्णतः स्वरचित व स्वप्रमाणित
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार