मत्तगयंद सवैया छंद
[ 04/09/2020]
मत्तगयंद सवैया छंद
प्रथम प्रयास,
211 211 211 211, 211 211 211 22
ब्याह करे वर खोजत सुंदर ।
होय सुता अपनी मन भाये ।।
गेह कुटुंबत देख लिया सब ।
दूलह के गुण देख न पाये ।।
द्वारप मारत नारि लजावत ।
सौहर को कुछ शर्म न आये ।।
कौन कहे तुझको सबला जब ।
औरत पे नर हांथ उठाये ।।
***
प्रेम भरे खत गोपी समीप उद्धव से भिजवाय रहें हैं ।
दूर करो मन शोक सभी यह गोपिन को समझाय रहे हैं ।।
प्रेम गिरा समझो तुम क्या खुद ज्ञान किसे सिखलाय रहे है ।
ज्ञान अहं सब दूर हुआ जब प्रेम भरे गुण गाय रहे है।।