मत्तगयंत सवैया (श्रृंगार वियोग)
रस:- श्रृंगार ( वियोग )
विधा :- मत्तगयंद सवैया = भगण X ७ +गुरु+गुरु
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रचना
( ०१ )
कोमल अंग उमंग भरा, मन साजन को खलनायक माने।
दग्ध हुई धरती उर की, हिय आज उन्हें बस निष्ठुर जाने।
दूर पिया सुध लेत नहीं, किससे सजनी यह बात बखाने।
भृंग बने वह डोल रहे, पर का कबहूं हमको पहचाने।।
( ०२ )
रुग्ण कठोर दिखे नयना, बिन साजन काट रही दिन राती।
भूल गये परदेश बसे, पदचाप सुनै धड़के निज छाती।
भाग्य बना रिपु मोर सखी, सजना मुझको समझे अपघाती।
सौतनियां विलमाय लई, अब देख किसे सजनी मुसकाती।।
( ०३ )
छोड़ गये सखि री सजना, अब पागल सी दिन – रात रहूं मै।
निश्चल प्रेम किया उनसे, किससे मन की सुन बात कहूं मै।
प्यार करूँ, मनुहार करूँ, पर कौन विधा यह घात सहूं मै।
कण्टक – कानन में रह लूं, बस साजन की पदचाप गहूं मै।।
पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
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घोषणा-मेरी यह रचना स्वरचित है ।
(पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’)
शहर का नाम:- मुसहरवा (मंशानगर) पश्चिमी चम्पारण, बिहार