मतलब परस्ती
आज का दौर मतलब परस्ती के उरूज पर है इससे ज़्यादा ख़ुदगर्ज़ी लोगों में शायद कभी नही थी। बहुत कम लोग हैं जो अब भी खुद्दार हैं जो बिना किसी लालच या मतलब के लोगों की मदद करते रहते हैं । आजकल के दौर में भी मददगार बहुत दिखाई देते हैं लेकिन जितने दिखाई देते है उतने हैं नहीं। उनमें से आधे तो फ़ोटो खिंचाने के लिए मदद करते हैं और किसी ख़ास मक़सद से भी करते हैं। असली मददगार और खुद्दार इंसान वही होता है जो बिना किसी नफ़ा नुक़सान की सोचे लोगों की तरफ़ अपने हाथ बढ़ा देता है । अभी थोड़े दिन पहले देश भर में लगे लॉक्डाउन के चलते गरीब और मज़लूम लोगों की आर्थिक हालत बहुत ख़राब हो गयी थी जिस के लिए सभी से मदद करने की अपील भी की गयी और देश भर से लोगों ने एक दूसरे की मदद के लिए तहे दिल से हाथ बढ़ाए लेकिन इसी बीच बहुत से लोग ऐसे भी थे जो मदद के नाम पर दिखावा मात्र कर रहे थे या अपनी सियासी ज़मीन पुख़्ता करने में लगे थे और सोशल मीडिया पर धड़ाधड़ फ़ोटो और विडीओ डाले जा रहे थे लोगों की मदद करते हुए। मैंने किसी किताब में पढ़ा था कि किसी की मदद करो तो इतनी खामोशी से करो कि दायें हाथ से करो तो बायें हाथ को भी खबर न हो लेकिन यहाँ तो लोग मदद चवन्नी की करते है और दिखावे करोड़ों के। और कुछ लोग तो इतने गिरे हुए होते हैं कि दूसरे लोगों के द्वारा दी गयी सहायता राशि में भी हाथ साफ़ कर लेते हैं । अगर बात मदद को उजागर करने की है तो उसके भी दो पहलू हैं की जब हम किसी की मदद करते हैं तो उसको किसी को दिखाकर करने की क्या ज़रूरत है ? बेशक हमें किसी की मदद बेहद खामोशी के साथ करनी चाहिए ताकि मदद लेने वाला खुद को समाज में छोटा महसूस न करे। दूसरा पहलू यह है कि अगर हम सबके सामने किसी की मदद करते हैं तो उसे देखकर और लोगों की भी हौंसला अफ़जाई भी होती है जिसे और लोग भी मदद करने के लिए आगे आते हैं । लेकिन फिर भी हमें दूसरों की मदद करके दिखावा नही करना चाहिए न ही कभी उसपे एहसान जताना चाहिए।