मतलबी हो गए लोग
किसे क्या कहें मतलबी हो गए लोग
रिशते भी बज़ारू हो गए स्वार्थी हो गए लोग.
आपसिक रिशतों में भी अमीरी ग़रिबी के तौलते वज़न
ये वज़नी स्वार्थ खु़द के रिशतों का गला घोंट गया.
ग़रीब हो जाए रिशतेदार फिर कौन पूछता है उसे?
अमीरज़ाद हो तो फिर वेबज़ह भी रिशते बनाए रखते.
विपति मे कोई किसी के काम नहीं आना चाहता?
आपसिक रिशतों में भी मतलबी हो गए जबसे लोग?
अब तो रिशते बनाए निभाने से पहले ही?
घाटा मुनाफे की सौदेबाजी हो जाती?
लोक समाज सब अपने स्वार्थ में डूबे रहते
क्या करे किशन? मतलबी जो हो गए लोग?
कवि- डाॅ. किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)