” मतलबी रिश्ते “
देखो….
मेरे पाले में तुम भले ना आओ
तुम्हारे पाले में मैं आ जाती हूँ ,
सब्र करो….
तुम्हारे किये का गिन – गिन कर
सारे हिसाब जोड़ कर बताती हूँ ,
सावधान….
तुम सब के सब बच कर रहना
फिर देखो कैसा मैं कमाल दिखाती हूँ ,
चाहे जितनी….
जितनी भी कर लो तुम छल से चोरी
सारे सबूत सरेआम करती हूँ ,
तुम जो….
कड़वे शब्दों में चाशनी लगाते हो
उसको मैं मिनटों में हटाती हूँ ,
तुमने जो….
अपनी आँखों पर लगा रखी है पट्टी
उसको हटा उसमें थोड़ी शर्म डालती हूँ ,
याद करो….
हमारी तकलीफ में जो तुम कतराते हो
तुम्हारे दुख में अपना साथ याद दिलाती हूँ ,
वाकई….
तुम तो पर्याय हो मतलब का
ये मैं कैसे भूल जाती हूँ ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 21/07/2021 )