मतभेद
कभी-कभी हम छोटी छोटी बातें को इतनी अहमियत दे देते हैं कि हम बड़े बड़े मुद्दों को उन पर विचार करने से टाल देते हैं ।इसका नतीजा ये होता है कि हम बड़े मुद्दों का हल खोजने में काफी समय गवाँ बैठते हैं। समय रहते यदि हल खोजा नहीं गया तो समस्याओं का हल खोजने में काफी मश़क्कत करनी पड़ती है। और कभी-कभी तो समस्याएं विकराल रूप धारण कर लेती कर लेती है ।
हमारी प्रकृति में यह शामिल है कि हम छोटी-छोटी बातों को बहुत गंभीरता से ले लेते हैं ।जबकि उन्हें इतनी गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं होती ।यदि छोटी-छोटी समस्याओं को उनके हाल पर ही छोड़ दिया जाए तो कभी कभी समय रहते समस्याएं अपने आप समाप्त हो जाती है है । छोटी-छोटी बातें मतभेदों का कारण बन सकती हैं यदि आपसी वार्तालाप से उन्हें दूर न किया जाये । इस प्रकार ये छोटी-छोटी बातें बड़ी समस्याओं का रूप धारण कर लेती हैं । तब उनका हल ढूँढना दुष्कर हो जाता है। छोटी-छोटी समस्याओं का कारण आपसी सोच का सामंजस्य ना होना है ।अधिकांश यह देखा गया है कि हम अपने अहम् की तुष्टि के लिए दूसरों के द्वारा प्रस्तुत विचारों को नकार देते हैं जो हमारी कुंठित मानसिकता का परिचायक है ।
विचारों के आदान-प्रदान में समरसता होना आवश्यक है । जिसमें आपसी विचारों के समादर की भावना का समावेश होना चाहिए । आपसी तर्कों की असहमति होने पर भी सौह्राद्रपूर्ण वातावरण में वार्ता का संचालन एवं समापन होना चाहिये। आपसी कटुता से बचने का हर संभव प्रयत्न करना चाहिए।
अन्ततः विवादों के हल में द्विपक्षी गंभीर वार्तालाप, एवं विचारों के आदान प्रदान हेतु समुचित वातावरण, अवसर एवं प्रस्तुति की स्वतंत्रता की अहम् भूमिका है। जिसके निर्वाह हर संभव प्रयत्न करना चाहिये।