मझधार में कश्ती
कैसा लगता है, होती है
कश्ती जब मझधार में
सवाल होते है मन में कई
डर लगता है डूब न जाए
कहीं, कश्ती मझधार में।।
फिर नज़र जाती है मांझी पर
जो अपने काम में लगा है
दे रहा है दिशा कश्ती को मेरी
मंज़िल दिखाने में लगा है।।
है विश्वास मुझे मांझी पर
मंज़िल पर पहुंच ही जाऊंगा
तभी सुकून से बैठा हूं मैं
उसकी कृपा से तर जाऊंगा।।
होने नहीं देता कोई कष्ट हमें
वो तो सबकी नैया पार लगता है
बढ़ते हैं आगे हम जब वो, नाव
के दोनों तरफ पतवार चलाता है।।
है नदी गहरी, जो डूब गए तो
घनघोर अंधेरा है इसमें
बैठें हैं जो नाव में आज, नज़र
आता, नया सवेरा है इसमें।।
ऐसे ही जीवन में सानिध्य मिले
प्रभु का, हम धन्य हो जाते है
याद करते हैं उनको मन से जब
सब कष्ट हमारे मिट जाते है।।
जबतक है पतवार हाथों में उसके
नहीं डूबेगी ये जीवन की नैया
मिलता रहे आशीर्वाद उसका
रखो विश्वास उसमे तुम, भैया।।