मजाज़ लखनवी
एक जगह मिलते हैं जब
मोहब्बत और इंकलाब!
तब जाके बनता है कोई
असरारुल हक़ ‘मजाज़’!!
अपने घर को फूंक कर
करनी पड़ती है रोशनी!
आसान नहीं होता देना
अपने वक़्त को आवाज़!!
Shekhar Chandra Mitra
एक जगह मिलते हैं जब
मोहब्बत और इंकलाब!
तब जाके बनता है कोई
असरारुल हक़ ‘मजाज़’!!
अपने घर को फूंक कर
करनी पड़ती है रोशनी!
आसान नहीं होता देना
अपने वक़्त को आवाज़!!
Shekhar Chandra Mitra