मज़ा आता है मुझे
ग़म हो या खुशी मुस्कुराने मे मज़ा आता है मुझे
लुत्फ़ ज़िन्दगी का उठाने में मज़ा आता है मुझे
ज़माने को दिखा दिखा के मोहब्बत करेंगे हम
जलने वालों को जलाने में मज़ा आता है मुझे
जो ख़्वाब टूट गया उसको दोबारा क्या देखना
फिर नए ख्वाबों को सजाने में मज़ा आता है मुझे
साहिल पे जाने की इतनी भी बेताबी नहीं मुझे
इन तूफानों से टकराने में मज़ा आता है मुझे
कभी ज़ालिम कभी सितमगर वो मुझे कहता है
न जाने क्यूं उसको सताने में मज़ा आता है मुझे
वो बिछाता है कांटे “अर्श” तो मैं फूल बिछाता हूं
दुश्मन को यूं मज़ा चखाने मे मज़ा आता है मुझे