“मज़ाक”
यह सब सुनकर वह घंटों तक रोती है
और तुम कहते हो बातें यह रोज़ रोज़ की होती हैं?
तुम्हारा मज़ाक वह उनके लिए श्राप सा होता है ,
अरे किस धुन में हो तुम,
यह खयाल कुछ मजाकिया नहीं, केवल पाप होता है।
नर्म फूल के टूटने पर जैसे खुरदुरी शाख होती है,
तुम्हारा मज़ाक तो हो गया,
लेकिन फ़िर मासूमियत, उसकी राख होती है।
गलती नहीं उसकी लेकिन, लगता उसे वह ही गलत है ।
तुम तो कह कर बढ़ गए आगे
तुम्हें क्या ही फर्क़ है?
यह कोई जवाब नहीं की दुनिया पूरी कहती है
इसका इलाज बताओ जो लड़की फिर वह सहती है।
चुप रहती है फिर, या फिर रो जाती है,
लड़ भी ले आके तुमसे अगर,
उन बातों से कहाँ उभर वो पाती है।
सवाल आयें तुम पर
तो तुम मांगते माफ़ी हो,
छोड़ दूँ लाख दफा तुमको मैं,
अगर उभरने के लिए यह काफी हो!