मज़ाक बन के रह गए हैं।
मज़ाक बन के रह गए है हम तेरी महफ़िल में।
दर्द ही दर्द समा गया है हंसते हुए इस दिल में।।
बेकार में ही हमारे कत्ल की वजा जान रहे हो।
देखना हमारा अपना ही निकलेगा कातिल में।।
अपने ही मुकद्दर पर हमको खूब रोना आया।
कश्ती हमारी जाकर यूं डूबी है जो साहिल पे।।
ऐसे जी के दुनियां में हम आज पछता रहे है।
कुछ भी ना मिला हमें जिन्दगी के हासिल से।।
धोखा खा कर भी दिल मोहब्बत कर रहा है।
खूब हंसी आयी है हमको इश्क ए जाहिल पे।।
उसकी फितरत ना बदली ज़ख्मों को देने की।
खुदा बनाके दिल लगाया था जिस ज़ालिम से।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ