मज़दूर
खून-पसीना बहाकर भी
क्या पाते मजदूर बेचारे!
हड्डी-पसली तुड़वाकर भी
क्या पाते मजदूर बेचारे!
वह भी इन बेईमानों से
देखा नहीं जाता है अब!
जिंदगी दांव लगाकर भी
क्या पाते मजदूर बेचारे!
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