मज़दूर
दूर का सफर है पर खुद के हौसले से पार कर जाएंगे।
गिरते-उठते, थमते-चलते, मंजिल तक पहुँच ही जाएंगे।
मज़दूर हैं साहब! हमें आदत हैं गहरे-गहरे चोटोंं की,
छालों का क्या आज कुछ ठीक होगें कल नये उभर आएगें।
-शशि “मंजुलाहृदय”
दूर का सफर है पर खुद के हौसले से पार कर जाएंगे।
गिरते-उठते, थमते-चलते, मंजिल तक पहुँच ही जाएंगे।
मज़दूर हैं साहब! हमें आदत हैं गहरे-गहरे चोटोंं की,
छालों का क्या आज कुछ ठीक होगें कल नये उभर आएगें।
-शशि “मंजुलाहृदय”