मज़दूर की लाचारी
मज़दूर की लाचारी
लाचारी में मज़दूर ने अपने, सिर पर बोझा ढ़ोया है
असहाय छोड़कर बच्चे को, मज़दूर का मन भी रोया है।।
दो वक्त का खाना मिल जाए, अरमान संजोए रहता है
नहीं फैलाता हाथ कभी, पीड़ा जितनी चाहे सहता है।
परदेस में आकर काम मिला, रोटी का उसको दाम मिला
तन दर्द करे जब पीड़ा से, मलहम न कोई बाम मिला।
ठोकर खाकर वह भटक रहा, कई रात से वह नहीं सोया है
असहाय छोड़कर बच्चे को, मज़दूर का मन भी रोया है।।
लाचारी में मज़दूर ने अपने, सिर पर बोझा ढ़ोया है
असहाय छोड़कर बच्चे को, मज़दूर का मन भी रोया है।।
नहीं एक ठिकाना उसे मिला, वह रोज भटकता रहता है
मिलता न कभी जब काम उसे, दुख-दर्द नहीं वह कहता है।
दो महीने से नहीं काम मिला, परिवार पर संकट आया है
जब फीस भरी ना बच्चे की, शिक्षा से वंचित पाया है।
घर परिवार की चिंता में, अपनों के बीच ही खोया है
असहाय छोड़कर बच्चों को, मज़दूर का मन भी रोया है।।
लाचारी में मज़दूर ने अपने, सिर पर बोझा ढ़ोया है
असहाय छोड़कर बच्चे को, मज़दूर का मन भी रोया है।।
ऊँचे बांस के डंडे पर, कभी गहरे कुएं में जाता है
जहरीली हवा से नाले की, दम घुट कर वहीं रह जाता है।
मिट्टी की खुदाई होती जब, रज के नीचे दब जाता है
कोयले की खानों में मज़दूर, बाहर निकल नहीं पाता है।
फिर भी अपनों की खुशियों का, बीज हृदय में बोया है
असहाय छोड़कर बच्चे को, मज़दूर का मन भी रोया है।।
लाचारी में मज़दूर ने अपने, सिर पर बोझा ढ़ोया है
असहाय छोड़कर बच्चे को, मज़दूर का मन भी रोया है।।
बच्चों की शादी की खातिर, कर्ज माँग कर लाता है
मूल चुका देता मेहनत से, ब्याज चुका नहीं पाता है।
घर गिरवी रखता अपना, पर पेट पालना आता है
इतनी तंगी में भी मज़दूर, ईमान बेच नहीं पाता है।
कठिन परिश्रम करके उसने, एक पैर भी खोया है।
असहाय छोड़कर बच्चे को, मज़दूर का मन भी रोया है।।
लाचारी में मज़दूर ने अपने, सिर पर बोझा ढ़ोया है
असहाय छोड़कर बच्चे को, मज़दूर का मन भी रोया है।।