मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
उर्दू के सुप्रसिद्ध शायर मोहम्मद इकबाल के विभिन्न सूक्तियों में से एक हैं:-
“मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना”
उपर्युक्त पंक्ति इकबाल जी ने बिल्कुल सही कहा हैं। इकबाल जी भारतीय कवि थे और भारत में विभिन्न प्रकार के धर्म, जाति तथा समुदाय के लोग रहते हैं। भारतीय लोगों में प्रत्येक लोगों के रहन-सहन, खान-पान, धार्मिक ग्रन्थ,भाषाएँ विभिन्न-विभिन्न होती है। परंतु सभी लोग एक भारतीय की तरह मिल-जुलकर रहते हैं। अतः, हमारा देश”विविधताओं में एकता का देश” कहा जाता है।
हमारे देश के कुछ नेता तथा कुछ कट्टरपंथी लोग अपनी इच्छा पूर्ति का आधार धर्म और समुदाय को बनाते है । वे धर्म को आधार लेकर लोगों के बीच फूट डालते हैं तथा दंगे-फसाद करवाके उनमें नफरत पैदा करवाते हैं। इनमें भारतीयता के भावना की कमी है। चंद सुखों के लिए लोग भी इन नेताओं और कट्टरपंथियों के बातों में आ जाते हैं और अपने ही लोगों से दुश्मनी की भावना रखने लगते हैं।
अगर हम धर्म और मजहब की बात करें, तो किसी भी धार्मिक ग्रंथ में ये नहीं कहा गया है कि इंसानों की इंसानों से ही परस्पर द्वेष भावना रखनी चाहिए । कोई भी मजहब दूसरे मजहब के लोगों को समता की नजर से देखती हैं।
धर्म और मजहब के नाम पर लड़ना मूर्खता का काम हैं, क्योंकि ये धर्म और मजहब मानव-निर्मित है तथा मानव के सुविधा के लिए बनाए गए हैं।ईश्वर और ख़ुदा को मानव ने ही बाँटा हैं।पर आजकल के कुछ लोग समाज में लोगों को भड़काने में लगे हुए हैं जैसे यही उनका पेशा बन गया हो।
औऱ तो और ये लोग आम जनता और नागरिकों को विभिन्न प्रकार के प्रलोभन भी देते हैं और इसके माध्यम से वो धर्म -परिवर्तन भी करवा लेते हैं,इससे स्प्ष्ट हैं कि वो अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ समझते हैं तथा आम जनता के ग़रीबी का गलत फायदा उठाते हैं।ये बिल्कुल गलत हैं, हम सभी भारतीयों को यह समझना चाहिए कि सबका धर्म और मजहब उसके लिए उपयुक्त हैं और धर्म-मजहब से कोई इंसान बड़ा-छोटा नहीं होता हैं।हमारे संविधान के द्वारा भी हमें कई धार्मिक अधिकार दिए गए हैं जिसके अनुसार हम केवल स्वेच्छा से ही अपना धर्म परिवर्तित कर सकते हैं, न कि किसी भी प्रकार के दबाव में आकर ।इसलिए हमें धर्म-मजहब के नाम पर लड़ना और भेदभाव करना रोकना चाहिए और दूसरों को भी रोकने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
हमारे विचार से इकबाल जी की यह उक्ति वर्तमान समाज के लिए बहुत सटीक और सार्थक हैं तथा वैसे कट्टरपंथियों पर सीधा वार करती हैं जो केवल अपने स्वार्थ-सिद्धि के लिए विभिन्न धर्मों और समुदायों में नफ़रत पैदा करवाती हैं तथा उन्हें सुधरने के लिए सिख देती एक उपयुक्त और महत्वपूर्ण सूक्तियों में से एक हैं।
हम सब एक ही ईश्वर के,
बनाये हुए अमूल्य संतान हैं।
जाति-धर्म तो हमने बनाए,
याद रख बस की हम इंसान हैं।
✍️✍️✍️खुशबू खातून