गीतकार मजरूह पर दोहे
तन-मन तो था शब्द का, गीत-ग़ज़ल की रूह
महावीर कविराय वो, शा’इर थे मजरूह
कहने को हरपल नया, रहते थे तैयार
मुम्बइया स्टाइल ग़ज़ब, फ़िल्मों से था प्यार
गीतकार मजरूह को, लाये थे नौशाद
अदबी शा’इर यूँ बने, फ़िल्मों के उस्ताद
सहगल से लेकर यहाँ, खूब उदित भी गाय
गीतकार मजरूह यूँ, काम सभी के आय
गीत कई मजरूह के, जज़्बातों की डोर
गाये आशा, वो लता, रफ़ी-मुकेश-किशोर
यू.पी. के सुल्तानपुरी, गीतकार मजरूह
छू लेते हैं आज भी, जवां दिलों की रूह
प्रगतिशील थी शायरी, उर्दू अदब मुक़ाम
वाह-वाह मजरूह ने, क्या खूब किया नाम