मजबूर मजदूर चला “गांव की ओर”
मजबूर मजदूर चला गांव की ओर ।
अब कैसे दिन काटे, कैसे कटे रातें,
और ना ही हो रही सुखद भोर।
अपना सामान ला दे, परिवार के साथ,
मजबूर मजदूर चला गांव की ओर।।
कई दिनों से चला जा रहा है,
अपना बोझा ढोता जा रहा है।
भूख प्यास से लड़ता जा रहा है,
गर्मी धूप में पसीने मैं भीगता जा रहा है।।
किसी मदद किसी प्रकार की राहत,
का सुनाई नहीं दे रहा शोर…….
मजबूर मजदूर चला गांव की ओर।।
शहर नगर की चकाचौंध से, डर लग रहा है,
करता था मेहनत तो शहर प्रगति कर रहा है।
अपना साथ नही दे रहा कोई सब बदल रहा है,
कब तक जिंदा रह पाएंगे, परिवार से कह रहा है।।
मौत आए तो आए अपनों के बीच,
जन्मभूमि मेकटे मेरी जीवन की डोर….
मजबूर मजदूर चला गांव की ओर।।