मजबूर दिल की ये आरजू
मजबूर दिल की ये आरजू
बस आरजू ही रह गई
बेकसूर दिल की ये आरजू
अश्क बनकर बह गई
मजबूर दिल………..……
उधर वो चले इधर हम चले
ना वो ही मिले ना हम मिले
एक हमसफर की आरजू
अश्क बनकर बह गई
मजबूर दिल……………..
दो घड़ी की वो मजबूरियाँ
बन गई हैं सदा की दूरियाँ
उन्हे जाँ कहने की आरजू
अश्क बनकर बह गई
मजबूर दिल….……………
‘विनोद’ कैसी दिल की लगी
क्यों उम्र भर भी ना ये बुझी
दिल में बसाने की आरजू
अश्क बनकर बह गई
मजबूर दिल………………
बस आरजू ही रह गई
स्वरचित
( V9द चौहान )