मजबूर इंसान
हाथों में सिर्फ दीपक हैं, ना है बाती और तेल।
इस बार दीवाली पर देखो, कैसा हुआ ये मेल।।
कैसा हुआ ये मेल, क्या दीवाली सूनी रह जायेगी।
क्या इस बार भी यारों, जोत से जोत ना जल पाएगी।।
मैं हूँ ‘अकेला’ दीपक, कैसे मैं जल पाऊँगा।
बिन तेल बाती के कैसे, अंधियारा मिटाऊंगा।।
वीर कुमार जैन ‘अकेला’