मजबूरी(कहानी)
सुबोध और सीमा ,उम्र 75 से 80 के बीच, दोनों नोएडा में एक सोसाइटी में रहते थे। बच्चे बंगलौर और मुम्बई में थे ।
लोकडाउन की वजह से दोनों डरे हुए थे। सोसाइटी वालों ने उनकी प्रॉब्लम देखते हुए उनकी बाई का आना बंद नहीं किया था।
सुबोध सेना से रिटायर हुए थे ।बहुत समझदार और परिपक्व सोच के थे। उसके बाद नोएडा ही बस गए थे। बच्चों के पास उनका मन नहीं लगता था। सबकी अपनी अपनी ज़िंदगी थी उसमें तारतम्य बैठाना आसान काम नहीं था। सम्बन्धों में प्रेम और अपनापन बना रहे इसलिये उन्होंने अलग रहने का फैसला लिया था। बीच बीच मे या तो वो बच्चों के पास चले जाते या कभी 1-2 दिन को बच्चे आ जाते। ज़िन्दगी आराम से चल रही थी।
सुबोध कभी कभी बस ये सोचकर परेशान हो जाते थे ‘अगर मैं नहीं रहा तो सीमा का क्या होगा’ …फिर वो सोच लेते जो होना है होगा ही…सोचकर क्यों परेशान होना। ज़िन्दगी ऐसे ही चल रही थी कि कोरोना ने मुश्किल में डाल दिया। सीमा से तो कुछ नहीं कहते पर सुबोध अंदर ही अंदर परेशान रहने लगे। अब वो किसी से मिल भी नहीं पाते थे । बस दोस्तों से फोन पर बात करते रहते थे। बच्चों के फोन भी कभी कभी आ जाते थे । नीचे जाकर वो दूध सब्जी फल ले आते थे।
दो महीने बीत गए थे। कोरोना की स्तिथि बिगड़ती ही जा रही थी। उनका मन का डर भी बढ़ता जा रहा था। और वही हुआ जिसका डर था। एक दिन उन्हें खुद को फीवर सा लगा। गले मे दर्द भी था। उन्हें समझ मे आ गया कि वो कोरोना की चपेट में आ चुके हैं। और सीमा को भी अवश्य कोरोना होगा। बाहर किसी से कहने का मतलब था उन्हें घर छोड़कर जाना पड़ता । फिर सीमा का क्या होगा । यही सोचकर वो परेशान थे।
अचानक उन्होंने एक फैसला किया। ये कहकर कामवाली को आने से मना कर दिया कि वो बच्चों के पास जा रहे हैं। पैसे वो कोरोना की वजह से उसे काफी एडवांस पहले ही दे चुके थे। सीमा को भी बुखार आ गया था । उसे सांस लेने में बहुत परेशानी हो रही थी । वो उसे गर्म पानी पिलाते भाप देते। पर बूढ़ी हड्डियां इतना कष्ट नहीं झेल सकीं उसने पति की बाहों में ही प्राण त्याग दिए। सुबोध ने आँखें मूंद ली। उनमें से आँसू टपक रहे थे । उन्होंने बेटे को फोन लगाया। सब हाल चाल लिया। फिर बेटी को फोन किया। किसी को कुछ नहीं बताया। वो जानते थे सुनने के पश्चात सब बेहद परेशान हो जाएंगे और उनका यहां आ पाना सम्भव नहीं है। वो सब ठीक हैं ये जानकर उन्हें संतोष हुआ। फिर अपने सबसे प्रिय मित्र को फोन लगाया। और फूट2 कर रो पड़े। उन्हें सीमा की मृत्यु का समाचार दिया। वो और बात नहीं कर सके। उन्होंने फोन काट दिया।
मित्र घर से बाहर नहीं जा सकता था उसने ने घबराकर सबको फोन कर दिया । बच्चों ने सोसाइटी में फोन किया। फौरन गार्ड ने आकर उनकी बेल बजाई।कोई आवाज न आने पर दरवाजा तोड़ा गया। अंदर सीमा के चेहरे पर चेहरा रखे सुबोध भी गहरी निंद्रा में सो रहे थे उनके प्राण भी छूट चुके थे ….सबकी आँखे उन दोनों को देखकर नम थी। बच्चे भी नहीं आ पाए। ट्रैन फ्लाइट सब बन्द थीं। कार से इतनी जल्दी आना सम्भव नहीं था। पुलिस द्वारा ही उनका दाह संस्कार कर दिया गया। कोरोना का ये कहर पता नहीं कब तक चलेगा …ये कितनी ज़िन्दगी और लीलेगा….
27-05-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद