मजबूरी हालातों की –
झूठ और सच का फर्क बेबाक कहता हूँ,
पर हालातों से समझौता कर खामोश रहता हूँ
दुनिया के हर जुल्म को अब मुस्कराकर सहता हूँ
मजबूर हूँ, गैरों को भी अपना कहता हूँ।।
झूठ और सच का फर्क बेबाक कहता हूँ,
पर हालातों से समझौता कर खामोश रहता हूँ
दुनिया के हर जुल्म को अब मुस्कराकर सहता हूँ
मजबूर हूँ, गैरों को भी अपना कहता हूँ।।