मजबूरियों से ज़िन्दा रहा,शौक में मारा गया
मजबूरियों से ज़िन्दा रहा,शौक में मारा गया
सब ने ये तक़रीर दी अच्छा है आवारा गया।।
कौन सी उम्मीद पर, ठिठके हुए हो मोड़ पर
जो उठा महफिल से, फिर कब पुकारा गया।।
किस यक़ीं पे ख़्वाहिशें अपनी सारी सौंप दी
जान तो जानी ही है अब जो बचा सारा गया।।
हवेली तलक पहुँचा नहीं इस बाढ़ का पानी
कच्ची दीवारें ढही, छत का भी सहारा गया।।
कैसी तंज़ीम फ़लक़ की है समझ नहीं पाया
चाँद मुर्दा रह गया है और टूट कर तारा गया।।
ज़िन्दगी जिसकी रही है हसरतों के ज़ब्त में
वो हक़ीक़त में,अक्सर होके पारा पारा गया।।
अपनी ये ज़िंदगी तमाम ख़सारे में ही रही है
यादों के चंद टुकड़े थे ये हक़ भी हमारा गया।।