मजदूर
फांके की रोटी
फटी लंगोटी
सूखे निबाले
दिल पे छाले
स्वप्न खुरदुरे
आस अधूरे
तन स्वेदसिक्त
मन भावरिक्त
समिधा-संघर्ष
किए लुप्त हर्ष
निष्ठुर ठेकेदार
विशेषणों का बौछार
फिर भी कार्यरत, मजबूर
मैं,मेहनतकश मज़दूर।
-©नवल किशोर सिंह
फांके की रोटी
फटी लंगोटी
सूखे निबाले
दिल पे छाले
स्वप्न खुरदुरे
आस अधूरे
तन स्वेदसिक्त
मन भावरिक्त
समिधा-संघर्ष
किए लुप्त हर्ष
निष्ठुर ठेकेदार
विशेषणों का बौछार
फिर भी कार्यरत, मजबूर
मैं,मेहनतकश मज़दूर।
-©नवल किशोर सिंह