मजदूर…!!
एक मजबूरी का रंग देखा मजदूरो के संग,
कुछ पैसों की खातिर जर्जर कर गए हो तन,
कभी हाथ- पांव में फफोले मिले..
कुछ औजारों के घाँव से सने..
जिंदगी बद-से-बदतर सी हो..
फिर भी जीने की आस लिए..
दो पैसे कमाने की होड़ में खुद का आत्मसम्मान भी खो चुके,
कोई डांट-फटकार के काम कराये,
कोई मीठे शब्दों से घाव जलाएं..
कोई जरूरत भरी नजर से देखे..
कोई सहानुभूति से खुद को बहलाया..
भरी दोपहरी में भी वह काम करें..
कोई पूछे ना कुछ चाहिए क्या तुम्हें..
माथे का पसीना एड़ी तक जब तक उनके ना तर जाए..
वह आस करे ना पानी की.. ना भोजन की ललकार लगाएं,
भोजन का कोई वक्त नहीं.. जब काम से राहत मिले तब भूख मिटाए,
जख्मों की परवाह बिना.. सहते हैं हर दर्द-पीड़ा..
महज अपनों के सपनों को संवारने की नुमाइश लिए..
जी लेते हैं दुत्कार भरा जीवन और कहला जाते हैं मजदूर…!!
❤️ Love Ravi ❤️