मजदूर
सीधे साधे होते हैं ये,मेहनतकश मजदूर
हो जाते हैं पल में इनके,सपने चकनाचूर
इनके दम पर ही बनती हैं ये ऊंची मीनारें
इन्हें झोपड़ी की मिलती है, कच्ची छत दीवारें
करते रहते हैं ये मेहनत जीवन भर भरपूर
सीधे साधे होते हैं ये,मेहनतकश मजदूर
कड़ी धूप हो या फिर सर्दी, काम हमेशा करते
बीमारी का बोझ लिए ये भूखे प्यासे मरते
आंखों में चिंता के आंसू,जीने को मजबूर
सीधे साधे होते हैं ये,मेहनतकश मजदूर
भूख- गरीबी ही तो इनको ,शहरों तक है लाती
सुख सपनों की दुनिया इनको, खींच यहाँ ले आती
पैसा तभी कमाने आते, घर से कितनी दूर
सीधे साधे होते हैं ये,मेहनतकश मजदूर
करते हैं ये काम तभी तो, आते हैं परिवर्तन
इनके कारण ही विकास है, विकसित है ये जीवन
अगर न हों ये हो जाएगा, जीवन ही बेनूर
सीधे साधे होते हैं ये,मेहनतकश मजदूर
डॉ अर्चना गुप्ता
17.05.2024